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January 18, 2022 at 9:50 am #2693
admin
Keymasterप्रतिहार एक उपाधि(tital) थी जो राष्ट्रकूट राजा ने गुर्जर राजा को दी थी???????
1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :—
अमोघ वर्ष शक सम्वत
793 ( 871 ई . ) का
सज्जन ताम्र पञ ) :—- I
इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे “हिरण्य – गर्भ – महादान ” नामक यज्ञ किया अवांछित और खंडित दासवतारा गुफा शिलालेख का उल्लेख है कि दांतिदुर्ग ने उज्जैन में उपहार दिए थे और राजा का शिविर गुर्जरा महल उज्जैन में स्थित था (मजूमदार और दासगुप्त, भारत का एक व्यापक इतिहास)।
अमोगवरास (साका संवत 793 = एडी 871) के संजन तांबे की प्लेट शिलालेख दांतिदुर्ग को उज्जैनिस दरवाजे के रखवाले (एल, वॉल्यूम XVIII, पृष्ठ 243,11.6-7)तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )और प्रतिहार नाम दिया
( ” हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम ” )2. सिरूर शिलालेख ( :—-
यह शिलालेख गोविन्द – III के गुर्जर नागभट्ट – II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे ” गुर्जरान ” गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
{ सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व – दीक्षित – पृष्ठ – 181 }3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :—
कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट – II का उल्लेख है ।
( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै” )
{ सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ – 156-160 }
4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
इन्द्र – तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर – गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै – गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
{ सन्दर्भ :-
1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट – 128, नोट -4
2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित – पृष्ठ – 184 -185 }5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :—-
चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
{ एपिग्राफिक इडिका – 1 पृष्ठ -112- 116 }6. गोहखा अभिलेख :–
चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
{ सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका – 11 – पृष्ठ – 142
2. कार्पस जिल्द – 4 पृष्ठ -256, श्लोक – 8 }7. बादाल स्तम्भ लैख:–
नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर – नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
{ सन्दर्भ :–एपिग्राफिक इडिका – 2 पृष्ठ – 160 – श्लोक – 13 }8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :–
गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय …… स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च ) -
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